बुरहान को ‘जिंदा’ रखने के लिए अमरनाथ यात्रा पर आतंकी नजर
हिजबुल के पोस्टर ब्वॉय बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से पूरे कश्मीर में जारी विरोध प्रदर्शन और हिंसा ने अगर सबसे ज्यादा परेशान किया है तो वह हैं अमरनाथ यात्रा के बीच फंसे श्रद्धालु। 1995 में कश्मीर के अलगाववादी संगठनों ने वादा किया था कि वे कश्मीरियत को जख्मी नहीं करेंगे। इसी वादे के बाद बाबा बर्फानी की यात्रा शुरू की गई थी लेकिन आखिर 11 साल बाद अचानक क्या बदल गया। क्यों अमरनाथ यात्रा फिर आतंकी जद में जान पड़ रहा है। पेश है एक रिपोर्टः
जिस समय कश्मीर घाटी में सैलानियों ने पिछले कई साल का रिकॉर्ड तोड़ा हो और पहले कुछ दिनों में ही अमरनाथ के दर्शनार्थियों की भारी भीड़ पवित्र गुफा होकर आई हो, उसी समय कश्मीर में असाधारण बवाल खड़ा हो जाए तो यह संयोग भी है और सोची-समझी योजना भी। संयोग इसलिए कि किसी को मालूम नहीं था कि एक कुख्यात आतंकवादी गुट का एक चर्चित सरगना सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारा जाएगा।
क्या राजनैतिक अस्थिरता लाने की ये साजिश है
कश्मीर सरकार को भी इस बात की भनक तक नहीं थी, यह आश्चर्य की बात है। सुनियोजित कुचक्र इसलिए है कि बुरहान वानी का मारा जाना एक बहाना था कश्मीर में वही हालात पैदा करने के लिए, जो 1989 में पैदा हो गए थे, जब आतंकवादी गुटों ने राजनैतिक अस्थिरता पैदा की थी। बुरहान वानी मारा जाएगा, इस बात का अंदाजा तो उन नेताओं को रहा ही होगा, जो आज वहां अराजकता का माहौल पैदा कर रहे हैं और आम लोगों को सड़कों पर उतरने पर मजबूर कर रहे हैं।
पिछले दशक के दौरान कश्मीर में आतंकवादी घटनाएं होती तो थीं, लेकिन उनका जनजीवन पर असर लगातार कम होता जा रहा था। उसका कारण था कि नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ कठिन हो गई थी। घुसपैठियों के सीमा पर ही मारे जाने की घटनाएं बढ़ रही थीं। धीरे-धीरे विदेशी आतंकवदियों का आना कम होने लगा था। एक तो वे कामयाब नहीं हो रहे थे, दूसरे कश्मीरियों के साथ उनका भावनात्मक मेल नहीं हो पा रहा था।
विदेशी आतंकवादियों को सुरक्षा बलों से बचाने के लिए गांवों के लोग जान का जोेखिम नहीं लेना चाहते थे। लेकिन दूसरा कारण यह था कि आम कश्मीरी महसूस करने लगा था कि आतंकवादी वारदात के कारण जो आतंक वातावरण पर छा जाता है, उसका सबसे बड़ा प्रभाव पर्यटन व्यवसाय पर पड़ता है। बाहर से लोग घूमने के लिए नहीं आते। पर्यटन पर घाटी के रोजगार का दारोमदार है, इसलिए आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लग गई थी। सब से बड़ी बात तो यह थी कि स्थानीय आतंकवादी गुटों की साख एकदम समाप्त हो गई थी।
आतंक की नर्सरी को सींचने की साजिश तो नहीं
आतंकवाद के आरंभिक दौर में हिज्बुल मुजाहिदीन की सबसे बड़ी भूमिका रही है। वह पिछले दशक में लगभग नगण्य हो गई थी। पाकिस्तान के बडे़ आतंकवादी गुट लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को घुसपैठ करने के लिए नए युवक नहीं मिल रहे थे, इसलिए समरनीति को बदलने की आवश्यकता पड़ी। फिर से स्थानीय आतंकवादी संगठनों को जीवित करने की योजना बनी। बुरहान वानी उसी योजना के तहत पहला सफल कमांडर साबित हो रहा था। पिछले दशक में आतंकवादी संगठनों और अलगाववादी संगठनों के बीच यह अलिखित समझौता था कि पर्यटन के मौसम में कोई बड़ी वारदात नहीं करनी चाहिए।
इसलिए नई समरनीति का पहला बिंदु यही है कि सेना और पुलिस को ही हिंसा का शिकार बनाया जाए। सैनिक शिविरों पर आक्रमण और सैनिक गाडि़यों पर बमबारी, यही मुख्य कार्रवाईयां होने लगीं। दूसरा फैसला यह था कि कोशिश की जाए कि पर्यटकों को नुकसान न पहुंचाया जाए। पिछले दो सालों में अमरनाथ यात्रा को भी लक्ष्य न बनाने का निश्चय किया गया था।
वानी की मौत को शहीद के रूप में बदलना चाहते हैं आतंकी
अमरनाथ यात्रा ठीक उसी मार्ग से जाती है, जिस पर पिछले कई सालों से आतंकवादी गुट सेना और पुलिस को निशाना बनाते रहे हैं। अनंतनाग से श्रीनगर के मार्ग में कई स्थल ऐसे हैं, जहां से आतंक की वारदात करना आसान है। वह अवंतीपुरा से पांपोर तक का राजमार्ग हो या वेरीनाग त्राल जैसे अंदरूनी रास्ते। इस वर्ष भी यही घोषणा की गई थी कि अमरनाथ यात्रा पर हमला करने का उनका कोई इरादा नहीं है, लेकिन बुरहान वानी के मारे जाने से हालात बदल गए हैं। वानी के मारे जाने की घटना को राज्यव्यापी आंदोलन में बदलने का लोभ पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी गुट और पाकिस्तान की आईएसआई नहीं छोड़ सकते। पर्यटन उद्योग का एक साल नष्ट करने और अमरनाथा यात्रा को बाधित करने से बदनामी के खतरे बुरहान वानी को एक शहीद के रूप में बदलने की योजना के सामने नगण्य ही माने जाएंगे।
अमरनाथ यात्रा : रुकावटें आईं पर यात्रा चलती रही
सन् 1991 से 1995 तक सरकार ने आतंकवादी हमले की आशंका से इस यात्रा को रद्द कर दिया था, लेकिन अलगाववादी संगठनों के इस ऐलान के बाद कि वे कश्मीरियत को जख्मी नहीं करेंगे, सरकार ने 1996 में इस यात्रा को फिर से शुरू करने की इजाजत दी।
- 1996 : लगभग एक लाख श्रद्धालु बाबा बर्फानी के दर्शनों के लिए चार दिन के भीतर उमड़ पड़े, मगर यात्रा के दौरान अचानक मौसम बिगड़ गया और अप्रत्याशित बर्फबारी में लगभग 250 श्रद्धालुओं की मौत हो गई।
- 2001 : अगस्त की पहली तारीख को पहलगाम में एक लंगर के ऊपर आतंकी हमले में 25 तीर्थयात्रियों, पुलिस वालों और स्थानीय लोगों को अपनी जान गंवानी पड़़ी।
- 2008 : श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को 800 कैनाल वनभूमि आवंटित करने के सवाल पर घाटी में विवाद पैदा हो गया। अंतत: सरकार को अपना आदेश रद्द करना पड़ा। महीनों चले इस टकराव में छह लोग मारे गए और 100 से ज्यादा घायल हुए।
- 2016 : हिज्बुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद घाटी में तनाव को देखते हुए 10 जुलाई को यात्रा रोक दी गई थी, अब पुन: शुरू की गई है।