Site icon Hinduism Now Global Press

शिवपूजन और कांवड़ यात्रा

हर साल श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवडिये सुदूर स्थानों से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव वापस लौटते हैं इस यात्राको कांवड़ यात्रा बोला जाता है . श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है. कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं. कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए है. 

भगवान परशुराम ने अपने आराध्य देव शिव के नियमित पूजन के लिए पुरा महादेव में मंदिर की स्थापना कर कांवड़ में गंगाजल से पूजन कर कांवड़ परंपरा की शुरुआत की, जो आज भी देशभर में काफी प्रचलित है. कांवड़ की परंपरा चलाने वाले भगवान परशुराम की पूजा भी श्रावण मास में की जानी चाहिए. भगवान परशुराम श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को कांवड़ में जल ले जाकर शिव की पूजा-अर्चना करते थे. शिव को श्रावण का सोमवार विशेष रूप से प्रिय है. श्रावण में भगवान आशुतोष का गंगाजल व पंचामृत से अभिषेक करने से शीतलता मिलती है.

 

मुख्य रूप से उत्तर भारत में गंगाजी के किनारे के क्षेत्र के प्रदेशों में कांवड़ का बहुत महत्व है. राजस्थान के मारवाड़ी समाज के लोगों के यहां गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ, केदारनाथ के तीर्थ पुरोहित जो जल लाते थे और प्रसाद के साथ जल देते थे, उन्हें कांवडिये कहते थे. विशेषतः वही लोग कावडियों कहलाये जाते थे. यह शास्त्रीय मत है. उसके अनुसार ये लोग गोमुख से जल भरकर रामेश्वरम में ले जाकर भगवान शिव का अभिषेक करते थे. यह परंपरा थी. लगभग 6 महीने की पैदल यात्रा करके वहां पहुंचा जाता था. इसका पौराणिक तथा सामाजिक दोनो महत्व है.

 

एक तो हिमालय से लेकर दक्षिण तक संपूर्ण देश की संस्कृति में भगवान का संदेश जाता था. भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की लौकिक और शास्त्रीय परंपराओं का आदान-प्रदान का बोध होता था. यह एक उद्देश्य भी इसमें शामिल था. धार्मिक लाभ तो था ही. परंतु अब इस परंपरा में परिवर्तन आ गया है. अब लोग गंगाजी अथवा मुख्य तीर्थो के पास से बहने वाली जल धाराओं से जल भरकर श्रावण मास में भगवान का जलाभिषेक करते हैं.

 

विशेषतः बैजनाथ धाम, बटेश्वर, पुरामहादेव, रामेश्वरम, उज्जयनी के तीर्थों के शिवलिंगों पर जलाभिषेक करते हैं. सर्वप्रथम भगवान परशुराम ने कांवड़ लाकर पुरा महादेव में जो उत्तर प्रदेश प्रांत के बागपत के पास मौजूद है, उन पुरातन शिवलिंग पर जलाभिषेक, गंढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाकर किया था. आज भी उसी परंपरा में श्रावण मास में गढ़मुक्तेश्वर जिसका वर्तमान नाम ब्रजघाट है, से जल लाकर दसियों लाख लोग श्रावण मास में भगवान शिव पर चढ़ाकर अपनी कामनाओं की पूर्ति करते हैं. बैजनाथधाम झारखंड प्रांत में स्थापित रावणेश्वर लिंग के रूप में स्थापित है

Exit mobile version