काऊइसम (Cowism), कंप्यूटर इंजिनियर, चेतन राउत द्वारा शुरू किया गया एक स्टार्ट अप है। चेतन का मानना है कि खेती के साथ साथ स्वदेशी गाय पालन ही किसानो की आत्महत्या रोकने का एकमात्र उपाय है।
चेतन राउत उस वक़्त नागपुर के YCCE कॉलेज में इंजीनियरिंग की पढाई कर रहे थे, जब विदर्भ के किसानो की आत्महत्या की खबरे हर रोज़ की बात हो गयी थी। चेतन के पिता, अरुण राउत भी एक समय पर किसान ही थे। विद्यार्थी जीवन में वे शरद जोशी के मार्गदर्शन में अनेक कार्यक्रमों में भाग लेते थे। लेकिन खेती में ज्यादा फायदा न होने के कारण नाखुश होकर उन्होंने खेती छोड़।
चेतन कहते है ,“मेरे पिताजी हमेशा खेती करने के विरुद्ध थे। हमें वो खेती छोड़कर अन्य व्यवसाय या नौकरी करने की सलाह देते। पर जब भी वो खेती के बारे में बाते करते थे तो उनकी आँखों में एक अजब सी चमक आ जाती । हम ये समझते थे कि भले ही उन्होंने खेती छोड़ दी हो पर उन्हें इससे कितना लगाव है ।”
जब भी चेतन विदर्भ के किसानो के आत्महत्या के बारे में सुनते थे तब उन्हें बहुत बुरा लगता था। खेती और किसानों से उन्हें लगाव था। कॉलेज के दिनों में ही चेतन विदर्भ युथ एसोसिएशन से जुड़ गये। ये संस्था किसानों को उनकी समस्या हल करने और उनके बच्चो की शिक्षा के लिये मदद करती है।
चेतन ने गौर किया कि पश्चिम महाराष्ट्र के किसान तो संपन्न है पर उसी महाराष्ट्र में रहनेवाले विदर्भ के किसान गरीबी और भुखमरी के कारण आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते है।इसलिये उन्होंने दोनों ही जगह पर जाकर जानकारी हासिल करने का निश्चय किया।
सन २०११ में इंजीनियरिंग की पढाई पूरी करने के बाद चेतन अपने दोस्तों के साथ पुरा महाराष्ट्र घुमने निकल पड़े। पुरे एक महीने के रोड ट्रिप के दौरान उन्होंने विदर्भ और पश्चिम महाराष्ट्र के किसानों के खेती करने में बहुत ज्यादा अंतर देखा। पश्चिम महाराष्ट्र के किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग (एकीकृत खेती याने एक साथ खेती करना) और लाइवस्टॉक रेअरिंग (पशुपालन) का इस्तेमाल करते है इसलिये उनके खेत हमेशा हरेभरे रहते है।
चेतन का मानना था की खेती छोड़कर दूसरा विकल्प ढूँढने के बदले अगर खेती के साथ साथ किसान दूसरा व्यवसाय करे तो उन्हें ज्यादा फायदा होगा।
किसानों को उनकी उन्नति के लिए मदद करने हेतु चेतन ने सन २०११ में टाटा इंस्टिट्यूट फॉर सोशल साइंस (TISS), मुंबई के सोशल आंतरप्रेनरशिप प्रोग्राम में हिस्सा लिया।
प्रोग्राम के अंतर्गत चेतन, तीन अलग अलग इंस्टिट्यूट में गए तथा ६ महीने में सामाजिक और ग्रामीण सम्बंधित क्षेत्रो में काम किया। वे मध्य प्रदेश के झबुआ आदिवासियों से भी मिले। सामजिक संस्था ग्रीन बेसिक्स के साथ मिलकर चेतन दक्षिण गोवा के आदिवासी क्षेत्र में भी एक महिना रहे।
चेतन महाराष्ट्र के बाबा आमटे परिवार द्वारा चलाये जानेवाले आनंदवन में भी गए। ताकि एक सामान्य गाव को सक्षम, संपन्न और खुशहाल कैसे बनाया जाये, ये सीख सके।
इसी विषय में गहरे पाठन के दौरान चेतन को ये पता चला कि पुराने ज़माने में लोगो को नमक आसानी से नहीं मिलता था। इसलिये लोग एक भिन्न प्रकार की चीटियों को पीसकर रोटी के साथ खाते थे जिसका स्वाद नमक जैसा था। उसके बाद नमक को विकल्प मिला और वो था दूध! लोग दूध के साथ रोटी खा सकते थे। और दूध उन्हें गायों से आसानी से मिल जाता था।
गायों से उन्हें बैल भी प्राप्त होते थे जिससे खेती कर सके।
इतना ही नहीं, गायों से उन्हें गोबर भी मिलता था जिसका रासायनिक ख़त के तौर पर इस्तेमाल होता था।
चूल्हा जलाने के लिये लकडियां इकट्ठा करने के लिए उन्हें जंगल में जाना पड़ता था जहा वन्य प्राणियों का डर था इसलिये लोग गोबर का इस्तेमाल चूल्हा जलाने के लिए करते थे।
बकरिया दूध देती थी और मुर्गिया मास और अंडे देती थी पर ये दोनों ही खेतो में उपयुक्त नहीं थे पर गाय ये सब चीजे तो देती ही थी, साथ में खेत में मदद भी करती थी। इस तरह लोग गाय पालने लगे और घर घर में लोग गाय को पूजने लगे।
इन सबसे चेतन ने यह निष्कर्ष निकाला कि अगर किसान गाय का इस्तेमाल सही तरह से करे तो उनकी सारी समयायें हल हो सकती है।
जनवरी २०१५ में चेतन ने काऊइस्म (COWISM) की शुरुआत की। काऊइस्म का मकसद किसानो को पुराने ज़माने में होनेवाली गायों पर आधारित खेती की जानकारी देना तथा इस तरह की खेती करने में उनकी सहायता करना था।
चेतन के लिये पूरा सफ़र इतना आसान नहीं था क्योकी जैविक खेती भले ही पुराने ज़माने में लोग करते थे पर आज के किसानों को उसका महत्व समझाना बड़ा ही कठिन है। उन्हें लगा कि अगर वो खुद जैविक खेती का इस्तेमाल अपने खेती में करे तो शायद दुसरे किसान इससे कुछ सीखे।
चेतन के सामने अनेक समस्याये थी जैसे कि इस तरह की खेती करने के लिये पैसो की जरुरत पर चेतन अपने निश्चय पर कायम थे। पर इस समस्या का भी हल जल्दी ही मिल गया।
ग्लोबल इंडियन आंटरप्रेनर २०१४ कांटेस्ट में काऊइस्म (COWISM) ने बाज़ी मारी और इनाम जीता। जितने के बाद DBS बैंक ने चेतन के प्रोजेक्ट को सराहा और उसमे निवेश किया।
इस दौरान चेतन ने डॉ. के. बी. वुडफोर्ड द्वारा लिखित किताब ‘डेविल इन द मिल्क’ पढ़ी जिससे उसे जर्सी गाय और स्वदेशी गाय के बारे में पता चला। स्वदेशी मतलब भारतीय जाती की गायों से मिलने वाले दूध में अमीनो एसिड होता है जिससे पाचन क्रिया अच्छी तरह से होती है और वो किडनी के लिये अच्छा भी होता है। इससे विटामिन B2, B3 और A मिलता है। इस दूध से रोग प्रतिकारक शक्ति बढती है और पेप्टिक अल्सर और कोलन, ब्रैस्ट और स्किन कैंसर के जीवाणुयों के लढने की क्षमता विकसित होती है। जर्सी गाय के दूध में BCM-7 होता है जिससे बच्चो में होने वाले मदुमेह (पीडीयाट्रिक डायबीटीस, औटिस्म और मेटाबोलिक डीजनरेटीव डिसीस होने की संभावना होती है।
जर्सी गाय ठंडी जगहों की आदि होती है। इसलिए हिंदुस्थानी वातावरण में गायों को कई तरह की बीमारियां हो जाती है और उन्हें पालने का खर्चा भी बढ़ जाता है।
चेतन ने स्वदेशी गाय पालने की शुरुआत चंद्रपुर से शुरू की है जिसका उद्देश किसानों को इस तरह की गायों से होनेवाले फायदे समझाना है।
अपने पहल की शुरुआत चेतन ने भारतीय प्रजाति की गीर गाय का दूध खरीदने से की। चेतन खुद ही इस दूध को मार्केट में बेचते है।
चेतन बताते है “मेरी माँ और मैं रोज सुबह दूध को पैक करते है और बेचने के लिये ले जाते है। लोग अक्सर ये कहकर मेरा मजाक उड़ाते थे कि अगर मुझे दूध ही बेचना था तो फिर मैंने इंजीनियरिंग क्यूँ की। लेकिन मेरी माँ ने हमेशा मेरा साथ दिया है।”
चेतन किसानों से मिलकर उनकी समस्या के बारे में जानकारी हासिल करने लगा। लेकिन पुराने ज़माने की तकनीक इस्तेमाल करने के बारे में किसानों को मनाना मुश्किल था।
पहले सिर्फ २ किसानो ने चेतन के इस पहल से प्रभावित होकर स्वदेशी गाय खरीदी। इस तरह के नये तकनीक से फायदा होने में बहुत वक्त लगता है इसलिये किसान जल्दी प्रभावित नहीं हो पा रहे थे। इसलिये चेतन ने अपने ही खेत में इसका इस्तेमाल करने की ठान ली ताकि वो अन्य किसानो को प्रेरित कर सके।
चेतन कहते है कि देसी गाय के गोबर और गोमूत्र से बनने वाली जैविक खतो से खेती में अच्छे बदलाव दिखायी दे रहे है।
चेतन ने अपने इस पहल का लक्ष्य “एक गाय, एक किसान” रखा है जिसके माध्यम से वो स्वदेशी गाय का इस्तेमाल करने के लिये किसानों को प्रेरित कर रहे है।
हम आशा करते है कि चेतन की इस पहल से अधिक से अधिक किसानो को सहायता मिले और हमारे किसान एक बार फिर से खुशहाल और संपन्न जीवन जी सके।