ये हर जगह हैं, हर पत्रिका इन आवारा गायों की कहानियाँ को अपने पाठकों को बताती हैं|
पोलिथीन खा-खा कर मरने वाली, दूध निचोड़ कर घर से धकेल कर बाहर कूड़े में मूँह मार कर अपनी भूख मिटाने वाली, दूध देने की स्तिथि में ना होने पर कसाई घर भेज देने वाली ये बेचारी कभी भगवान कृष्ण की प्रिय थी|
पर क्या गाय वाकई आवारा होती है, जैसे ये सब छापा जाता है या उनको ‘आवारा’ बनने पर मजबूर किया जाता है, कूड़े और गंदगी में धकेल कर उसको आवारा बता कर बदनाम किया जाता है?
कई लोग कहते हैं की गाय तो एक पशु है, महिलाओं की चिंता करो| पर जिस देश में उस पशु को, जिसको माँ का दर्जा प्राप्त है, से ही लोगों ने अपना मानने से मुँह मोड़ लिया हो, उस समाज से क्या उम्मीद करेंगे आप? माँ से बढ़कर क्या होता है? जिसे माँ का मान नहीं, वो किसी और का क्या मान करेगा या करेगी?
गाय को माँ मानने वाले आज तक जितने देखें हैं वो केवल इस मूक जीव से प्रेम करता है और उसकी रक्षा को वो अपना धर्म समझता है| पर आज इन जैसे बेटे-बेटियों की संख्या कम हो गयी है, इसीलिए आज माँ-समान गाय आवारा हो गयी है|
हर जगह कूड़े में खड़ी ये मूक जीव, जिसे भारत के हिंदू अपनी माँ-समान मानते हैं, आज उसकी ये दुर्दशा किसी को नहीं कचोटती?
शर्म की बात ये है, की फ़ेसबुक, ट्विटर पर हिंदुत्व की बात करने वाले अक्सर इस बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे पर चुप्पी साधे दिखते हैं वरना क्या ये हो सकता है की इस जीव की व्यथा कोई ना देख या सुन सके? हम कहते हैं, की आप गाय को माँ का मान देना नहीं चाहते अब, तो कोई दिक्कत नहीं| पर उस पर घृणित आरोप जड़ कर उसकी तकलीफ़ का मखौल तो ना उड़ाया करिए जनाब| ये देश महाराज शिवाजी, महाराणा प्रताप और महाराजा रणजीत सिंह जैसे महान प्रतापी और गौ से प्रेम करने वाले योद्धाओं का है| गाय के लिए ना सही, कम से कम इन महान आत्माओं के लिए ही, गाय को आवारा कहना कृपया पूर्णत: बंद कर दीजिए|
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